खेल भी अजीब है प्यार का

खेल भी अजीब है प्यार का कोई हँसता
है तो कोई रोता  है
रोटी है तू तो आंशु मेरे आंख से बेहता है
याद करती है तू  तड़पना मुझे पड़ता है
महसूस करे तू कुछ भी एहसास मुझे होता है
चोट लगती है तुझे दर्द मुझे होता है
चाहे भीड़ में रहूं या अकेला ना जाने क्यों मेरे दिलो दिमाग पेसिर्फ तू ही छां जाता है
ये सब बाते वही समझ सकता जो सच्चा प्यार करता  है
शीशा चाहे टूटे तो टूटे शिशा चाहे टूटे तो टूटे मगर भगवान करे किसी का दिल न टूटे

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